Wednesday 20 January 2016

ग़ालिब एक लहर




ग़ालिब का जन्म २७ दिसम्बर १७७६ को आगरा में हुआ था ग़ालिब उर्दू व फारसी के महान शायर थे इन्हें फ़ारसी कविताओं को हिन्दुस्तानी ज़ुबान में लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है उनका पूरा नाम असद-उल्लाह-बेग खान था. उनके पिता व चाचा का देहांत जब हुआ तब वो बहुत छोटे थे ग़ालिब तुर्क मूल के परिवार से थे उनकी प्रारंभिक शिक्षा के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता पर ग़ालिब के अनुसार उन्होंने ११ वर्ष की आयु से ही लिखना शुरू कर दिया था उन्होंने ज़्यादातर रचनायें उर्दू व फ़ारसी में लिखी है जिनके विषय भक्ति और सौन्दर्य रस हैं उन्होंने काव्य को सबसे रोमांटिक शैली में लिखा जिसे की ग़ज़ल का रूप मन जाता है

“हैं और भी दुनिया में सुखंदर बहुत अच्छे ,
कहते हैं ग़ालिब का अंदाज़-ए-बयान और है

ग़ालिब का विवाह १३ साल की उम्र में हुआ था उनकी बेगम का नाम उमराव जान था वो ख़ुदा को मानने वाली और परम्पराओं का पालन करने वाली महिला थीं ग़ालिब और उमराव जान के वैवाहिक जीवन सही नही था विवाह के बाद ग़ालिब दिल्ली आ गए थे उन्हें पेंशन के सिलसिले में कलकत्ता की यात्रा भी करनी पड़ी जिसका ज़िक्र उनकी नज़मों में मिलता है

बहादुर शाह ज़फ़र ने उनके ‘दबीर-उल मुल्क’ के ख़िताब से नवाज़ा था बाद में उन्हें ‘मिर्ज़ा-नोशा’ का भी ख़िताब मिला वो बहादुर शाह ज़फ़र के दरबार में महत्वपूर्ण दरबारी थे ग़ालिब शहंशाह के बच्चों के शिक्षक भी रहे वे मुग़ल दरबार के इतिहासविद भी रह चुके थे

यूँ तो ग़ालिब ने कई विधाओं में लिखा है उनमे से एक ‘रेख्ता’ है ये एक फारसी शब्द है जिसका मतलब है गिरा पड़ा, बिखरा हुआ, ये उर्दू भाषा का पुराना नाम है जो उसे एक शताब्दी पहले प्राप्त था रेख्ता में कुछ प्रचलित शायरी हैं:

“इस सादगी पे कौन न मर जाये ए खुदा,
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नही

“उधर वो बद-गुमानी है, इधर ये ना-तवानी है
न पुछा जाये उस से न बोला जाए मुझसे

उनके देखे से तो आ जाती है मुंह पर रौनक
वो समझते हैं बीमार का हाल अच्छा है

“क्यूँकर उस बुत से रखु मैं जान अज़ीज़
क्या नहीं है मुझमे ईमान अज़ीज़

“क्या फ़र्ज़ है सबको मिले एक अजीब सा जवाब
आओ न हम भी सैर करें कोह-ए-तूर की
।"

“क्या वो नमरूद की खुदाई थी
बंदगी में मिरा भला न हुआ
।"

क़यामत है कि होवे मुद्दई का हम-सफ़र ग़ालिब
वो काफ़िर जो खुदा को भी न सौंपा जाए है मुझसे
।"

-Rakhi Sharma 

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