हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है और उसका भारत के साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान एवं स्थान है। वैसे तो हिंदी के जन्म को लेकर भांति भांति के विचार हैं परन्तुं मूलतः इस जन्म संस्कृत से मन जाता है। इसके जन्म में प्राकृत और अपभ्रंश का भी योगदान है। अपभ्रंश में कई सारी बोलियाँ सम्मिलित हैं। जैसे बुंदेली, बहोली, भोजपुरी, अवधि, ब्रज, मगही, उर्दू व अन्य। साहित्य की शुरुवात में साहित्यिक कार्य इसी भाषा में किये।
हिंदी साहित्य को कई कालों में विभाजित किया गया है ।
आदिकाल की शुरुवात ग्यारवी शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी तक मानी जाती है। आदिकाल में वीर रस की प्रधानता थी। इस काल की कविताओं में बड़े-बड़े शूरवीर राजाओं की गाथाओं का अभिव्यक्त किया गया। जैसे पृथ्वीराजरासो जो की कवि चंद्रवरदाई द्वारा लिखी गई।
पूर्व मध्यकाल या भक्तिकाल चौदहवी से अठारवीं शताब्दी तक माना जाता है। इस काल में हिंदी को एक नयी पहचान मिली। इस काल की रचनाएं भक्ति से ओत प्रोत थी। इस काल की रचनाओं में सूरदास की सूरसागर प्रसिद्ध मानी जाती है।
उत्तर मध्यकाल अठारह से बीसवी शताब्दी तक माना जाता है इस काल को रीती काल या श्रृंगार काल भी कहते हैं। इस काल में प्रेम से ओत -प्रोत रचनाओं का संकलन किया गया। इस काल में को नायक मानकर ज्यादातर रचनाओं का संकलन किया गया।
आधुनिक काल की शुरुवात बीसवी सदी में हुई। इस काल में मुख्य सामाजिक मुद्दों की रचनाओं का संकलन किया गया। जैसे भ्रष्टाचार गरीबी असमानता आदि। कवियों और रचनाकारों ने इन मुद्दों का अपनी कृतियों में सृजन किया।
हिंदी साहित्य में दो विधाओं के अन्तर्गत रचनायें लिखी जाती हैं जिनमे गद्य और पद्य सम्मिलित हैं। गद्य वह विधा है जिसके अन्तर्गत हम पात्र निबंध कहानी उपन्यास संस्मरण लेक आदि लिखते हैं। पद्य विधा में हम कविता काव्य गाने भजन आदि लिखते हैं। पद्य के रूप में हम निबंध नहीं लिख सकते हैं और गद्य के रूप में हम पद्य या कविता नहीं लिख सकते हैं। पद्य ले रूप में लिखा जा सकता है जिसको हम गायन रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं परन्तु गद्य को हम गायन के रूप मे प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं। इसमें हम किसी विषय पे लिख सकते हैं उसे केवल पढ़ा जा सकता है। गाने के रूप में गाया नहीं जा सकता। गद्य में अलंकारों का प्रयोग नहीं होता है पर पद्य में अलंकारों और रस का प्रयोग होता है।
हिंदी साहिया में पद्य का अपना अलग ही मुकाम है। पद्य को और भी खूबसूरत बनाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता हैं। अलंकार पद्य का गहना है। इसके बिना पद्य एक ऐसी खूबसूरत नारी के समान है जिसने श्रृंगार नहीं किया है।
शरीर की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए जिस प्रकार मनुष्य ने भिन्न -भिन्न प्रकार के आभूषण का प्रयोग किया, उसी प्रकार उसने भाषा को सुंदर बनाने के लिए अलंकारों का सृजन किया। जिस प्रकार नारी के सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए आभूषण होते हैं, उसी प्रकार भाषा के सौन्दर्य के उपकरणों को अलंकार कहते हैं । इसीलिए कहा गया है -' भूषण बिना न सोहई कविता ,बनिता मित्त।
- Rakhi
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