दशहरा या दसेरा
शब्द 'दश' (दस) एवं 'अहन्' से बना है
विजयदशमीया आयुध पूजा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है ।
इस पर्व को भगवती के 'विजया' नाम पर 'विजयादशमी' कहते हैं। इस दिन रामचंद्रजी चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुँचे थे। इसलिए
भी इस पर्व को 'विजयादशमी'
कहा जाता है।
आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय 'विजय' नामक मुहूर्त होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। इसलिए भी
इसे विजयादशमी कहते हैं।
दशहरा उत्सव की
उत्पत्ति
इसी दिन लोग नया
कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजाकी
जाती है। प्राचीन काल में राजा, इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए
प्रस्थान करते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला
बनाकर उसे जलाया जाता है। अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप
में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह
शक्ति-पूजा का पर्व एवं शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा
विजय का पर्व है।
भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है,
शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता
प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया,
पर्व दस प्रकार के पापों-
काम,
क्रोध,
लोभ,
मोह,
मद,
मत्सर,
अहंकार,
आलस्य,
हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा
प्रदान करता है ।
धार्मिक मान्यता
हिन्दू धर्म के अनुसार
इस दिन राम ने रावण का वध किया था। रावण राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लंका ले
गया था। भगवान राम युद्ध की देवी मां दुर्गा के भक्त थे, उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा की
पूजा की और दसवें दिन लंका नरेश रावण का वध किया।
ब्रज के मन्दिरों
में इस दिन विशेष दर्शन होते हैं। इस दिन नीलकंठ का दर्शन बहुत शुभ माना जाता है।
यह त्यौहार मुख्य रूप से क्षत्रियों का माना जाता है। इसमें अपराजिता देवी की पूजा
होती है। यह पूजन भी सर्वसुख देने वाला है।
दुर्योधन ने पांडवों को जुए में पराजित करके बारह वर्ष के वनवास के साथ तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास
की शर्त दी थी। तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुनः बारह वर्ष का
वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक
शमी वृक्ष पर रखा था तथा स्वयं वृहन्नला वेश में राजा विराट के यहाँ नौकरी कर
ली थी। जब गोरक्षा के लिए विराट के पुत्र धृष्टद्युम्न ने अर्जुन को अपने साथ लिया,
तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपने हथियार
उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। विजयादशमी के दिन भगवान रामचंद्रजी के लंका
पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने भगवान की विजय का उद्घोष
किया था। इसी कारण विजयकाल में शमी वृक्ष का पूजन होता है।
सांस्कृतिक पहलू
दशहरे का
सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर
लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का ठिकाना नहीं रहता। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह
भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। समस्त
भारत-वर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है।
महाराष्ट्र में
इसे सामाजिक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। सायंकाल के समय पर सभी ग्रामीणजन
सुंदर-सुंदर नव वस्त्रों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार करशमी वृक्ष के पत्तों के रूप में 'स्वर्ण' लूटकर अपने ग्राम में वापस आते हैं। फिर उस स्वर्ण का
परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है।
बंगाल में इसे
नारी शक्ति की उपासना और माता दुर्गा की पूजा अर्चना के लिए श्रेष्ठ समयों में से
एक माना जाता है। अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए मशहूर बंगाल में दशहरा का मतलब
है दुर्गा पूजा। बंगाली पांच दिनों तक माता की पूजा-अर्चना करते हैं जिसमें चार
दिनों का अलग महत्व होता है। ये चार दिन पूजा के सातवें, आठवें, नौवें और दसवें
दिन होते हैं, जिन्हें क्रमश: सप्तमी, अष्टमी, नौवीं और दसमी के
नामों से जाना जाता है। दसवें दिन प्रतिमाओं की भव्य झांकियां निकाली जाती हैं और
उनका विसर्जन पवित्र गंगा में किया जाता है। गली-गली में मां दुर्गा की बड़ी-बड़ी
प्रतिमाओं को राक्षस महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है।
दशहरे की
समसालयिकता
बुराई पर अच्छाई
की जीत का प्रतीक - आज हर तरफ फैले भ्रष्टाचार और अन्याय रूपी अंधकार को देखकर मन
में हमेशा उस उजाले की चाह रहती है जो इस अंधकार को मिटाए। कहीं से भी कोई आस ना
मिलने के बाद
हमें हमारी
संस्कृति के ही कुछ पन्नों से आगे बढ़ने की उम्मीद मिलती है। हम सबने रामायण को
किसी ना किसी रुप में सुना,
देखा और पढ़ा ही
होगा। रामायण हमें यह सीख देती है कि चाहे असत्य और बुरी ताकतें कितनी भी ज्यादा
हो जाएं पर अच्छाई के सामने उनका वजूद एक ना एक दिन मिट ही जाता है। अंधकार के इस
मार से मानव ही नहीं भगवान भी पीड़ित हो चुके हैं लेकिन सच और अच्छाई ने हमेशा सही
व्यक्ति का साथ दिया है ।
राम और रावण की
कथा तो हम सब जानते ही हैं जिसमें राम को भगवान विष्णु का एक अवतार बताया गया है। वह
चाहते तो अपनी शक्तियों से सीता को छुड़ा सकते थे लेकिन मानव जाति को यह पाठ पढ़ाने
के लिए कि “हमेशा बुराई अच्छाई से
नीचे रहती है और चाहे अंधेरा कितना भी घना क्यूं ना हो एक दिन मिट ही जाता है”,
उन्होंने मानव योनि में जन्म लिया और एक आदर्श
प्रस्तुत किया। रावण, कुंभकर्ण और
मेघनाथ के पुतलों के रूप में लोग बुरी ताकतों को जलाने का प्रण लेते हैं। आज दशहरे
का मेला जगह की कमी की वजह से छोटा होता जा रहा है लेकिन दशहरा आज भी लोगों के
दिलों में भक्तिभाव को ज्वलंत कर रहा है।