Saturday 12 December 2015

साहित्य वाला सिनेमा


सिनेमा और साहित्य का संबंध ठीक उसी तरहा से माना जाता है जैसे नृत्य और नृत्यक एक दूसरे से संबध रखते हैं | विश्व सिनेमा से लेकर भारतीय सिनेमा में साहित्य की बहुत भारी घुसपैठ रही है | विश्व सिनेमा में "हार्पर ली" के उपन्यास "मॉकिंग बर्ड टू किल" पर बनी इसी नाम की फिल्म अब तक की सबसे सफल और महान फिल्म मानी जाती है | यहाँ मैं एक फिल्म का और ज़िक्र करना चाहूँगा जिसका नाम “ज़ोरबा दा ग्रीक है’’ | यह ब्रिटिश फिल्म निकॉस कज़्न्ट्किस के उपन्यास पर आधारित थी | इस फिल्म की कहानी साहित्यक भाषा जैसी ही थी | कहानी में एक उम्रदराज़ फक्कड़ किस्म के व्यक्ति को काम के बोझ से ग्रसित एक व्यापरिक व्यक्ति को सभी प्रकार के तनाव से मुक्त करते हुए दिखाया है |

अगर हम इक्कीसवी सदी की बात करें तो जे.के रौलिंग की किताब हॅरी पॉटर  ने विश्व सिनेमा में अपनी ज़बरदस्त धाक जमाई है |  हॅरी पॉटर  के जितने भी संग्रह बूकसेल्फ़ में पहुँचे हैं उतनी ही फिल्में इन किताबों पर बनी हैं और उन्होनें साथ साथ ही बॉक्स ऑफीस में भी धूम मचाई है | अभी हाल ही में एक और लेखिका जो अपनी क़लम के दम पर अरबपति बनी है | बात हो रही है ई एल जेम्स की जिन्होनें "फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे" नामक एक कामयाब उपन्यास रचा और उसके बाद इस उपन्यास पर एक फिल्म भी बनी जो काफ़ी सफल रही |

और दो हज़ार तेरह में एक ऐसी कहानी पर्दे पर लोगों को देखने के लिए मिली जो इतनी संवेदनशील थी की लोग पूरी फिल्म गीली पलक करके देखते रहे | फिल्म का नाम ट्वेल्व ईएर्स ए स्लेव जिसे दो हज़ार चोदह का अकेड़मी अवॉर्ड मिला वो भी बेस्ट पिक्चर की श्रेणी में | यह फिल्म सोलोमन नॉर्थअप के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है | इस उपन्यास में अश्वेत गुलामों की कहानी लेखक द्वारा कही गई है | उसके बाद बड़े ही नाज़ुक और तकनीकी रूप से कहानी को मार्मिकता का लबादा ओढाते हुए स्टीवन एम सी क्वीन ने पर्दे पर इस कहानी को फिल्म का आकार दिया है |

इसी श्रेणी में हम डेनी बॉयल की फिल्म स्ल्म्डॉग मिलेनियर और ताइवानी फिल्मकार एंग ली की फिल्म लाइफ ऑफ पाई को भी रख सकते हैं | स्लॅम डॉग मिलेनियर भारतीय लेखक विकास स्वरूप के उपन्यास क्यू एंड ए पर आधारित थी | इस फिल्म ने उस समय विश्व सिनेमा पर गहरा प्रभाव छोड़ा था | आस्कर जीतने के साथ साथ फिल्म ने रिकॉर्ड तोड़ कमाई भी की और इससे जुड़े हर व्यक्ति को रातों रात मशहूर कर दिया | यह पहली फिल्म है जिसने भारतीय कहानी को विश्व पटल पर स्थापित कर दिया | यन्न मारटेल के उपन्यास लाइफ ऑफ पाई पर जब एंग ली ने फिल्म बनाई तो कोई सोच भी नहीं सकता था कि ये फिल्म इस एशियाई फिल्म मेकर को उसका दूरा अकेड़मी अवॉर्ड दिलवा देगी | इस फिल्म की कहानी भी भारतीय जीवन पर आधारित है | इसमें एक लड़के को एक बाघ जिसका नाम रिचर्ड पार्कर होता है के साथ समुद्र में निर्वाह करना पड़ता है |

आज तक जितना भी सिनेमा उपन्यासों की कहानियों पर बना है वो अपने आप में ही अलहदा है | यूरोप में तो हर तीसरी फिल्म की कहानी साहित्य से उठाई हुई होती है | और हम ऐसा भी नहीं कह सकते कि साहित्यिक कहानियों पर सिर्फ़ कलात्मक सिनेमा ही गढ़ा जा सकता है | बहुत सी ऐसी फिल्में भी सिल्वर स्क्रीन पर आई हैं जो साहित्यिक कथाओं पर आधारित रही हैं, इन्होनें वाकई में बॉक्स ऑफीस पर खूब सारी कमाई की है | अब अगर हम हिन्दुस्तानी सिनेमा की बात करें तो यहाँ भी खूब सारी साहित्यक कहानियों और उपन्यासों पर सफल फिल्मों का निर्माण हुआ है | यदि हम कुछ अपवादों को छोड़ दें तो करीब सभी कोशिशें सफल ही हुई हैं | मन्नू भंडारी के उपन्यास यही सच है पर रजनीगंधा नामक फिल्म बनी थी जिसे बासु चटर्जी ने बनाया था |

बहुत सी और भी फिल्में बनी हैं उपन्यासों पर आधारित जैसे देवआनंद की गाइड, तेरे मेरे सपने, देवदास, थ्री ईडियत्स, साँवरिया, ओमकारा, परिणीता, हेलो, सात खून माफ़, काई पोचे, टू स्टेट्स, आईशा, दा नेमसेक, मक़बूल, दा ब्ल्यू अम्ब्रेल्ला और अभी हाल ही में आई हैदर जो विशाल भारद्वाज़ ने शेक्सपियर के हेमलेट से प्रेरित होकर बनाई है |

जब मैं इस ब्लॉग को लिख रहा था उसी दौरान मुझे यह ख्याल भी आया कि दुनियाँ का कोई भी आर्ट एक दूसरे से कहीं कहीं संबंध रखता है | तो आगे से जब भी कोई उपन्यास या साहित्यिक रचना पर आधारित फिल्म देखें तो एक वाक्य ज़रूर बोलिएगा ....साहित्य वाला सिनेमा |

Ashish Jangra
StoryMirror