Saturday 12 December 2015

साहित्य वाला सिनेमा


सिनेमा और साहित्य का संबंध ठीक उसी तरहा से माना जाता है जैसे नृत्य और नृत्यक एक दूसरे से संबध रखते हैं | विश्व सिनेमा से लेकर भारतीय सिनेमा में साहित्य की बहुत भारी घुसपैठ रही है | विश्व सिनेमा में "हार्पर ली" के उपन्यास "मॉकिंग बर्ड टू किल" पर बनी इसी नाम की फिल्म अब तक की सबसे सफल और महान फिल्म मानी जाती है | यहाँ मैं एक फिल्म का और ज़िक्र करना चाहूँगा जिसका नाम “ज़ोरबा दा ग्रीक है’’ | यह ब्रिटिश फिल्म निकॉस कज़्न्ट्किस के उपन्यास पर आधारित थी | इस फिल्म की कहानी साहित्यक भाषा जैसी ही थी | कहानी में एक उम्रदराज़ फक्कड़ किस्म के व्यक्ति को काम के बोझ से ग्रसित एक व्यापरिक व्यक्ति को सभी प्रकार के तनाव से मुक्त करते हुए दिखाया है |

अगर हम इक्कीसवी सदी की बात करें तो जे.के रौलिंग की किताब हॅरी पॉटर  ने विश्व सिनेमा में अपनी ज़बरदस्त धाक जमाई है |  हॅरी पॉटर  के जितने भी संग्रह बूकसेल्फ़ में पहुँचे हैं उतनी ही फिल्में इन किताबों पर बनी हैं और उन्होनें साथ साथ ही बॉक्स ऑफीस में भी धूम मचाई है | अभी हाल ही में एक और लेखिका जो अपनी क़लम के दम पर अरबपति बनी है | बात हो रही है ई एल जेम्स की जिन्होनें "फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे" नामक एक कामयाब उपन्यास रचा और उसके बाद इस उपन्यास पर एक फिल्म भी बनी जो काफ़ी सफल रही |

और दो हज़ार तेरह में एक ऐसी कहानी पर्दे पर लोगों को देखने के लिए मिली जो इतनी संवेदनशील थी की लोग पूरी फिल्म गीली पलक करके देखते रहे | फिल्म का नाम ट्वेल्व ईएर्स ए स्लेव जिसे दो हज़ार चोदह का अकेड़मी अवॉर्ड मिला वो भी बेस्ट पिक्चर की श्रेणी में | यह फिल्म सोलोमन नॉर्थअप के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है | इस उपन्यास में अश्वेत गुलामों की कहानी लेखक द्वारा कही गई है | उसके बाद बड़े ही नाज़ुक और तकनीकी रूप से कहानी को मार्मिकता का लबादा ओढाते हुए स्टीवन एम सी क्वीन ने पर्दे पर इस कहानी को फिल्म का आकार दिया है |

इसी श्रेणी में हम डेनी बॉयल की फिल्म स्ल्म्डॉग मिलेनियर और ताइवानी फिल्मकार एंग ली की फिल्म लाइफ ऑफ पाई को भी रख सकते हैं | स्लॅम डॉग मिलेनियर भारतीय लेखक विकास स्वरूप के उपन्यास क्यू एंड ए पर आधारित थी | इस फिल्म ने उस समय विश्व सिनेमा पर गहरा प्रभाव छोड़ा था | आस्कर जीतने के साथ साथ फिल्म ने रिकॉर्ड तोड़ कमाई भी की और इससे जुड़े हर व्यक्ति को रातों रात मशहूर कर दिया | यह पहली फिल्म है जिसने भारतीय कहानी को विश्व पटल पर स्थापित कर दिया | यन्न मारटेल के उपन्यास लाइफ ऑफ पाई पर जब एंग ली ने फिल्म बनाई तो कोई सोच भी नहीं सकता था कि ये फिल्म इस एशियाई फिल्म मेकर को उसका दूरा अकेड़मी अवॉर्ड दिलवा देगी | इस फिल्म की कहानी भी भारतीय जीवन पर आधारित है | इसमें एक लड़के को एक बाघ जिसका नाम रिचर्ड पार्कर होता है के साथ समुद्र में निर्वाह करना पड़ता है |

आज तक जितना भी सिनेमा उपन्यासों की कहानियों पर बना है वो अपने आप में ही अलहदा है | यूरोप में तो हर तीसरी फिल्म की कहानी साहित्य से उठाई हुई होती है | और हम ऐसा भी नहीं कह सकते कि साहित्यिक कहानियों पर सिर्फ़ कलात्मक सिनेमा ही गढ़ा जा सकता है | बहुत सी ऐसी फिल्में भी सिल्वर स्क्रीन पर आई हैं जो साहित्यिक कथाओं पर आधारित रही हैं, इन्होनें वाकई में बॉक्स ऑफीस पर खूब सारी कमाई की है | अब अगर हम हिन्दुस्तानी सिनेमा की बात करें तो यहाँ भी खूब सारी साहित्यक कहानियों और उपन्यासों पर सफल फिल्मों का निर्माण हुआ है | यदि हम कुछ अपवादों को छोड़ दें तो करीब सभी कोशिशें सफल ही हुई हैं | मन्नू भंडारी के उपन्यास यही सच है पर रजनीगंधा नामक फिल्म बनी थी जिसे बासु चटर्जी ने बनाया था |

बहुत सी और भी फिल्में बनी हैं उपन्यासों पर आधारित जैसे देवआनंद की गाइड, तेरे मेरे सपने, देवदास, थ्री ईडियत्स, साँवरिया, ओमकारा, परिणीता, हेलो, सात खून माफ़, काई पोचे, टू स्टेट्स, आईशा, दा नेमसेक, मक़बूल, दा ब्ल्यू अम्ब्रेल्ला और अभी हाल ही में आई हैदर जो विशाल भारद्वाज़ ने शेक्सपियर के हेमलेट से प्रेरित होकर बनाई है |

जब मैं इस ब्लॉग को लिख रहा था उसी दौरान मुझे यह ख्याल भी आया कि दुनियाँ का कोई भी आर्ट एक दूसरे से कहीं कहीं संबंध रखता है | तो आगे से जब भी कोई उपन्यास या साहित्यिक रचना पर आधारित फिल्म देखें तो एक वाक्य ज़रूर बोलिएगा ....साहित्य वाला सिनेमा |

Ashish Jangra
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Tuesday 24 November 2015

भारत के त्यौहार

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            त्यौहार हमारी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा हैं. ये खुशियों की सौगात लेकर आते हैं.विए ज़िन्दगी की नीरसता को दूर करते हैं.भारत में बहुत से त्यौहार मनाये जाते हैं.इनके तीन प्रकार हैं राष्ट्रीय, धार्मिक और मौसमी.राष्ट्रीय त्यौहार देशभक्ति की भावना के साथ मनाये जाते हैं.धार्मिक त्यौहार लोगों की धार्मिक मान्यताओं पर आधारित होते हैं.मौसमी त्यौहार मौसम पर आधारित  होते हैं.लोग इन्हें बड़े ही उल्लास और ख़ुशी के साथ मनाते हैं. राष्ट्रीय त्योहारों में स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस,गाँधी जयंती इत्यादि आते हैं.धार्मिक त्योहारों में गुरु पर्व, होली, लोहड़ी,बुद्धपूर्णिमा,महावीर जयंती, दशहरा, दिवाली, जन्माष्टमी, छठ, नवरात्री, ईद, क्रिसमस इत्यादि सम्मिलित हैं.मौसमी त्यौहार हैं ओणम,पोंगल,बसंत पंचमी बैशाखी आदि.त्यौहार ज़िन्दगी की धूमधाम को बढ़ाते हैं. ये धूमधाम ज़िन्दगी में नया उल्लास और मस्ती लेकर आती है.त्योहारों से नयी उर्जा का संचार होता है.ये ख़ुशी और शांति का सन्देश देते हैं.भारत के त्यौहार सदभावना संस्कृति से परिपूर्ण तथा रोमांचक और रंगीन होते हैं.भारत के त्यौहार यहाँ के लोगों की तरह अपने आप में विभिन्नता लिए हुए हैं.भारत के कई त्यौहार धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं.कुछ त्यौहार तो सम्मानित लोगो की स्मरणीय यादों के साथ जुड़े होने के कारण मनाये जाते है.ऐसे त्यौहार उन लोगो की यादों से लोगों एक नयी शिक्षा और उनके जीवन से सीखने को प्रेरित करते हैं.वहीँ दूसरी तरफ मौसम में बदलाव और नया सत्र में भी कुछ त्यौहार मनाये जाते हैं!

राष्ट्रीय त्यौहार जैसे गणतंत्र दिवस स्वतंत्रता दिवस और गाँधी जयंती आदि बड़े ही उत्साह के साथ मनाये जाते हैं.ये त्यौहार राष्ट्रीय पर्व हैं और इनमे राष्ट्रीय अवकाश रहता है.ये त्यौहार सारे देश में समान रूप में मनाये जाते हैं. हर धरम हर मज़हब इनको उसी हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है. दिल्ली ऐसे त्योहारों का मुख्य शहर है.गणतंत्र दिवस की परेड दिल्ली में बड़ी ही भव्य तरीके से की जाती है.सैनिकों के अलावा बहुत से स्कूलों के

दिवाली हिन्दुओं में मनाया जाने वाला प्रसिद्ध त्यौहार है.इए त्यौहार  हिन्दू भगवान् राम की रावण पे विजय के पश्चात अयोध्या लौटने के उपलक्ष्य में मनाते हैं.ये बुराई पे अच्छाई की जीत है.घरों को साफ़ और उनमे पुताई की जाती है.लोग नए कपडे पहनते हैं.व्यापारी अपने नए काम की शुरुवात करते हैं.मिठाइयाँ बांटी जाती हैं.सब अपने घरों को सजाते हैं घरों में दीयों से रौशनी की जाती है माँ लक्ष्मी की आराधना की जाती है.बच्चे पटाके चलते हैं और बड़े भी इस त्यौहार का पूरा लुत्फ़ लेते हैं!

रामनवमी पर्व राम के जन्मदिन के अवसर पर पर मनाया जाता है.जन्माष्टमी का पर्व कृष्णा  के जन्मदिन के उपलक्ष्य पे मनाया जाता है.दुर्गा पूजा असम बंगाल और दुसरे राज्यों में धूमधाम से मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध त्यौहार है.इसमें दुर्गा माँ की पांच दिन तक पूजा अर्चना की जाती है.फिर पांच दिन बाद धूमधाम से उनकी प्रतिमा को पानी में विसर्जित किया जाता है.उत्तर भारत में दशहरा विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है.ये मान्यता है की इस दिन बुराई की अच्छाई पैर जीत हुई थी.राम ने रावन पे विजय प्राप्त की थी..महाराष्ट्र में गणपति उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है!
होली सर्दियों के ख़तम होने पे मनाया जाने वाला त्यौहार है.ये त्यौहार बसंत ऋतू के आगमन कका सूचक माना जाता है.मणिपुर में इस पर्व पर रासलीला का आयोजन किया जाता है जो कि भगवान् कृष्णा और गोपियों को समर्पित होता है.लोग एक दुसरे पर रंग डालते हैं.होलिका दहन किया जाता है जिसमे प्रहलाद को याद किया जाता है.ये त्यौहार भी हमे बुराई पर अच्छाई की जीत का सन्देश देता है!

छठ पूजा बिहार भारत और कुछ राज्यों में मनाई जाती है.सुबह सुबह ही भगवान् सूर्य की उपासना की जाती है मिठाइयाँ और फल सूर्य भगवान् को अर्पित किये जाते हैं .
ईद रमजान माह के ख़तम होने पर मनाई जाती है.ईद के दिन मोहम्मद साहब के समक्ष नमाज़ पढ़ी जाती है.पूरे महीने मुसलमान व्रत रखते हैं.अन्तं में ईद मनाई जाती है जिसमे खाने और खिलाने के प्रथा को आगे बढे जाता है!

सिख गुरुनानक देव जि का जनम दिन बाई धूमधाम और उल्लास के साथ मानते हैं इस अवसर पर गुरुद्वारों में अरदास की जाती है तथा लंगरों का आयोजन होता है.चिराग जलाये जाते हैं व पटाखे भी फोड़े जाते हैं.ये गुरु अर्जुनदेव और गुरुतेग बहादुर का जनम दिवस व उनका शहीद दिवस भी मानते है. बड़ी तादाद में लंगर सेवा का आयोजन होता है. बौद्ध धार्मिक त्यौहार बुद्ध पूर्णिमा और जैन महावीर जयंती मानते हैं!

क्रिसमस ईसाईयों का एक प्रमुख त्यौहार है. ये ईसा मसीह के जन्मदिन के अवसर जाता है.ये दिसंबर की २५ तारीख को मनाया जाता है.क्रिसमस ट्रीको सजाया जाता है जिस पर खिलोने बनावटी तारे बल्ब आदि लगाये जाते हैं.संता क्लॉज़ आते हैं चर्च में बड़ा आयोजन होता है.प्राथनाएं की जाती हैं पारसी धरम के ओग भी क्रिस्टियन धरम के लोगों की तरह अपने त्यौहार मानते हैं वो नओरोज़ मानते है अगस्त और सितम्बर में!

भारत में मौसमी त्यौहार भी मनाये जाते हैं. बिहू बड़े ही हर्सौल्लास के साथ मनाया जाता है.बैसाखी फ़सल कटने पर मनायी जाती है.ओणम भी क्रेरल का त्यौहार है जो फसलो से जुड़ा है.बसंतपंचमी जोकि उत्तर भारत में मनाया जाता है बसंत ऋतू के आगमन का द्योतक है!

विभिन्न तरह के त्यौहार भारत में मनाये जाते हैं.ये त्यौहार जहाँ आपसी सद्भाव और भाईचारा बढ़ाते हैं वहीँ समाज को नयी दिशा व व्यक्तियों को उनकी ज़िन्दगी की नीरसता को दूर करते हैं.त्यौहार मानाने से उनमे नयी उर्जा व शक्ति का संचार होता है.जलोग एक दुसरे के साथ समय व्यतीत करते हैं .हमारे जीवन में त्योहारों की महत्ता को अनदेखा नहीं किया जा सकता क्युंकी ये माध्यम हैं खुशियों के उल्लास का आपसी सद्भाव का!


बच्चे इस परेड भाग लेते हैं.सभी राज्य इसमें अपनी झांकियां लेकर आते हैं जो की उनके प्रदेश को दर्शाती हैं और साथ ही साथ उनके संसाधन उनमे हुई उन्नति और उनकी उपलब्धियां को भी दर्शाया जाता है.भारतीय सेना इस परेड में अपनी शक्ति गोला बारूद एयरक्राफ्ट आदि का प्रदर्शन करती हैं इसमें तीनो सेनायें जल सेना वायु सेना थलसेना आदि आती हैं.गाँधी जयंती पर नेता और और देश की जनता गाँधी जी को श्रधांजलि अर्पित करते हैं और उनकी शिक्षाओं का जीवन में पालन करने का प्राण लेते हैं.स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमन्त्री राष्ट्रीय ध्वज फैरातें हैं तथा राष्ट्र को लालकिले से सम्भोदित करते हैं!

--Rakhi
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Friday 20 November 2015

प्रेम चंद- उपन्यास सम्राट



प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू के महान लेखकों में से एक हैं .इनका पूरा नाम धनपत राय श्रीवास्तव था इनको नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना गया .इनको उपन्यास लिखने में महारथ हासिल था इसीलिए इनको शरतचंद्र चट्टोउपाध्याय ने उपन्यास सम्राट कहकर सम्भोधित किया प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास में ऐसी की एक ऐसी परम्परा का विकास किया जिसने पूरी शती के साहित्य का मार्गदर्शन किया.प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी! उनके लेखन के बिना हिंदी साहित्य का विकास अधूरा है .वे एक संवेदनशील लेखक सचेत नागरिक कुशल वक्ता थे.

प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी के निकट लमही गाँव में हुआ था. उनकी माता का नाम आन्नादी देवी था तथा पिता मुंशी अजायबराय लमही में डाकमुंशी थे .उनकी शिक्षा का प्रारंभ उर्दू और फ़ारसी से हुआ.पढने का शौक उन्हें बचपन से ही था.तेहरा साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्मे होशरूबा पढ़ लिया था.१८९८मे मीट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और एक विद्यालय में शिक्षक हो गए.नौकरी के साथ उन्होंने पढाई जारी रखी.१९१० मे उन्होंने अंग्रेजी दर्शन फ़ारसी और इतिहास में इन विषयों के साथ अन्तर पास किया और १९१९ में बी.ए. पास करने के बाद शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर नियुक्त हुए.उनके माता पिता का देहांत जब हुआ तब वे सात वर्ष के थे.उनका जीवन काफी संघर्ष में बीता.उनकी शादी १५ वर्ष की आयु में हुई जो की सफल नहीं रही फिर उन्होंने दूसरी शादी की और उनकीं तीन संतान हुयी.१९१० में उनकी रचना शोज़े वतन के लिए इनपे जनता को भड़काने का आरोप लगाया गया.इसके बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर लिखना शुरू किया.वे प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे.और कई कहानियों का सृजन इसी नाम से किया. अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे गंभीर रूप से बीमार पड़े.उनका निधन ८ अक्तूबर  को हुआ.

प्रेमचंद आधुनिक हिंदी के पिता माने जाते हैं.उनकी पहली कहानी सौत थी जो की सरस्वती पत्रिका के दिसम्बर अंक में प्रकाशित हुआ.उनकी अंतिम कहानी कफ़न थी. उनका लेखन कार्यकाल बीस वर्ष का था.उनकी कहानियाँ यथार्थ पे आधारित होती थी. प्रेमचंद की कृतियाँ सामाजिक विषयों पर आधारित थी. चाहे वो दलित से जुड़े हुए विषय हों या स्त्रियों से सम्बंधित.हों.उनका पहला लिखित उपलब्ध उर्दू उपन्यास असरारे-मुआबिद है.हमखुर्मा व असरारे-मुआबिद है जो हिंदी में प्रेमा के नाम से प्रकाशित हुआ.इसके बाद उनका पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन के नाम से आया.जो १९०८ में प्रकाशित हुआ.सोज़े-वतन यानी देश का दर्द .देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होने के कारन इसपर अँगरेज़ सरकार ने रोक लगा दी.प्रेमचंद के नाम से उन्होंने शुरुवात बड़े घर की बेटी कहानी से की.उनके प्रमुख उपन्यास सेवासदन श्रम रंगभूमि निर्मला कायाकल्प गबन कर्मभूमि गोदान मंगलसूत्र इत्यादि थे.उन्होंने कई कहानियों का संग्रह भी किया जिनमे दुनिया का सबसे अनमोल रतन सप्त्सरोज नवनिधि प्रेमपूर्णिमा प्रेमपचीसी प्रेम प्रतिमा आदि थे. उन्होंने नाटक भी लिखे पर नाटक  इतने सफल नहीं हुए जितनी उनकी कहानिया और उपन्यास प्रचलित हुए संग्राम प्रेमकी वेदी इत्यादि उनके प्रमुख नाटक थे. उन्होंने चंद निबंध भी लिखे जिनमे चाँद मर्यादा स्वदेश आदि प्रमुख हैं .

प्रेमचंद ने हिंदी को एक नया आयाम दिया. उन्होंने बेहद मार्मिक और समाज से जुडी हुयी रचनाओं का सृजन किया और उनकी रचनाओं को काफी सफलता मिली. उनकी कहानियों को काफी सराहना मिली.उनको उनकी अनुपम कृतियों के लिए हमेशा याद किया जायेगा!

Tuesday 17 November 2015

कहानी के किरदार- किरदारों की कहानी


हर कहानी में किरदार का अपना १ अलग ही महत्व होता है, बिना किरदारों के कहानी कहना या गढना असंभव सी बात है | ये ठीक उस तरह की बात है कि जैसे शादी है पर बगैर दूल्हा दुल्हन के, बहुत से लेखकों का मानना है कि कहानी की शुरुआत ही किरदार से आरंभ होती है | जब कोई किरदार आप आस पास के माहौल में देखते हैं तो आपके दिमाग़ में १ कहानी पनपनी शुरू हो जाती है |

कहानी अपना आकार किरदार के साथ ही ले पाती है, और किरदार भी अपना रंग तब जमा सकता है जब कहानी किरदार की पकड़ में हो. ये भी सच है की किरदार कोई पैदा करने वाला जीव नहीं है, वो पहले से ही हमारे आसपास के जीवन में जीवन यापन कर रहे होते हैं | आप मंटो साहब की कोई भी कहानी पढ़ लीजिए आपको उनकी कहानी के किरदार ऐसे मालूम पड़ेंगे जैसे वे किरदार आपसे मेल खाते हों. और हुआ भी यही था, जब भी उन्होने किसी कहानी का खाका अपने ज़हन में डाला तो उनके किरदार सबसे पहले उनके लिखे हुए पन्नों पर दस्तक देते थे. उसके बाद कहानी अपने चरम पर होते हुए पाठकों के दिमाग़ और दिल पर गहरा प्रभाव छोड़ती थी और आज भी लोग मंटो के प्रभाव से निकल नहीं पाए हैं |

कॉलेज में एक उपन्यास पढ़ा था  "जहाज़ का पंछी" इलाचंद्र जोशी जी का लिखा हुआ एक अजीब सी दुनिया में ले जाने वाला उपन्यास, इस उपन्यास का नायक एक घूमकड़ इंसान होता है जो हर बार अपनी यात्रा खुद तय करता है, वो न जाने किस चीज़ की तलाश में भटक रहा होता है, किस मंज़िल को पाने हेतु वो दर दर की ठोकरें ख़ाता है | यह एक आत्मकथा की शैली में लिखा हुआ उपन्यास है | इस किरदार को लेखक ने शायद अपने अंदर जिया है तभी वो इतने अच्छे से संप्रेषण हो पाता है कथा में.


यहाँ मैं एक और उपन्यास का ज़िक्र करना चाहूँगा जिसका शीर्षक "काशी का अस्सी है" इस उपन्यास के लेखक "काशीनाथ" हैं जो काशी यानी बनारस में ही निवास करते हैं | काशी का अस्सी लिखने से पहले काशीनाथ जी ने बनारस को अच्छे से घोट के पिया हुआ था, मेरा यहाँ ये मतलब है कि वे काशी  के चप्पे चप्पे से वाकिफ़ हैं |
काशीनाथ जी ने इस उपन्यास को वास्तविकता का ऐसा लबादा ओढ़ाया है जो वाकई में बहुत बहुत क़ाबिले तारीफ है!

उन्होने काशी नगरी  के अस्सीघाट के उन लोगों का महीन निरीक्षण किया जो मनोरंजक होने के साथ साथ किरदार के प्रारूप में एकदम फिट बैठते थे. काशीनाथ जी इन किरदारों से रोज पप्पू की मशहूर चाय की दुकान  में मिलते और उनकी कही बातें उनके गप्पे सब अपने जहन में डाल लेते और घर आकर उन्हें पन्नों पे उतार देते.

तो इसी तरीके को आजमाते हुए काशीनाथ जी ने काशी का अस्सी का निर्माण किया. उन्होने सिर्फ़ किरदारों की खोज़ की और बस फिर बन गया अपने आप में हिन्दी साहित्य का एक कामयाब उपन्यास. विश्व साहित्य की या और दूसरी भाषाओं की कहानियों की बात की जाए तो वहाँ भी यही प्रारूप कामयाब रहा है. लियो तोल्स्तोय से लेकर व्लादिमीर नावकोव तक ने सिर्फ़ मज़बूत और वास्तविक किरदारों का उपयोग करके बेहतरीन रचनाओं का सृजन किया.

कहतें हैं लियो तोल्स्तोय ने जब वार एंड पीस लिखा तो उन्होनें उस समय रूसी राजतंत्र   का बहुत ही बारीकी से विश्लेषण किया, इसीलिए वार एंड पीस में इतने सारे किरदार हैं और वे सभी कहानी को उसकी मंज़िल तक ले जाते हैं. चलिए यहाँ तो हमने कुछ लेखकों की कहानियों के बारे में बात की लेकिन अगर हम कहानी और किरदार की असली बात करें तो वो ये है की इन दोनो का एक दूसरे के बिना निर्वाह नहीं हो सकता. अगर कहानी को सृजन की कड़ाही में तलना है तो सबसे पहले हमें किरदारों को मसालों की माफ़िक़ इस्तेमाल करना होगा. हम अगर किरदारों में भी अगर इतना घुस गये की कहानी को ही भूल जाएँ तो वो भी कहानी और किरदारों के लिए अच्छी बात नहीं होगी. इसलिए कहानी और किरदार दोनों को हम किसी कहानी के दो मुख्य और आरम्भिक तत्व मान सकते हैं. तो अबकी बार जब हम कोई कहानी सोचेंगे या लिखेंगे तो हम सबसे पहले किरदार ढूंढ़ेंगे और फिर कहानी की ज़मीन पर क़िस्सों का १ मकान बनाएँगे.

- Ashish Jangra
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Friday 16 October 2015

हिंदी युग का प्रारम्भ


हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है और उसका भारत के साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान एवं स्थान है। वैसे तो हिंदी के जन्म को लेकर भांति भांति के विचार हैं परन्तुं मूलतः इस जन्म संस्कृत से मन जाता है। इसके जन्म में प्राकृत और अपभ्रंश का भी योगदान है। अपभ्रंश में कई सारी बोलियाँ सम्मिलित हैं। जैसे बुंदेली, बहोली, भोजपुरी, अवधि, ब्रज, मगही, उर्दू व अन्य। साहित्य की शुरुवात में साहित्यिक कार्य इसी भाषा में किये।

हिंदी साहित्य को कई कालों में विभाजित किया गया है ।

आदिकाल की शुरुवात ग्यारवी शताब्दी से चौदहवीं  शताब्दी तक मानी जाती है।  आदिकाल में वीर रस  की प्रधानता थी। इस काल की कविताओं में बड़े-बड़े शूरवीर राजाओं की गाथाओं का अभिव्यक्त किया गया। जैसे पृथ्वीराजरासो जो की कवि चंद्रवरदाई द्वारा लिखी गई। 

पूर्व मध्यकाल या भक्तिकाल चौदहवी से अठारवीं शताब्दी तक माना जाता है। इस काल में हिंदी को एक नयी पहचान मिली। इस काल की रचनाएं भक्ति  से ओत प्रोत थी। इस काल की रचनाओं में सूरदास की सूरसागर प्रसिद्ध मानी जाती है। 

उत्तर मध्यकाल अठारह से बीसवी शताब्दी तक माना जाता है इस काल को रीती काल या श्रृंगार काल भी कहते हैं। इस काल में प्रेम से ओत -प्रोत रचनाओं का  संकलन किया गया। इस काल में  को नायक मानकर ज्यादातर रचनाओं का संकलन किया गया। 

आधुनिक काल की शुरुवात बीसवी सदी में हुई। इस काल में मुख्य सामाजिक मुद्दों की रचनाओं का संकलन किया गया। जैसे भ्रष्टाचार गरीबी असमानता आदि। कवियों और रचनाकारों ने इन मुद्दों का  अपनी कृतियों  में सृजन किया। 

हिंदी साहित्य में दो विधाओं के अन्तर्गत रचनायें लिखी जाती हैं जिनमे गद्य और पद्य सम्मिलित हैं। गद्य वह विधा है जिसके अन्तर्गत हम पात्र निबंध कहानी उपन्यास संस्मरण लेक आदि लिखते हैं। पद्य विधा में हम कविता काव्य गाने भजन आदि लिखते हैं। पद्य के रूप में हम निबंध नहीं लिख सकते हैं और गद्य के रूप में हम पद्य या कविता नहीं लिख सकते हैं। पद्य ले रूप में लिखा जा सकता है जिसको हम गायन रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं परन्तु गद्य को हम गायन के रूप मे प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं। इसमें हम किसी विषय पे लिख सकते हैं उसे केवल पढ़ा जा सकता है। गाने के रूप में गाया नहीं जा सकता। गद्य में अलंकारों का प्रयोग नहीं होता है पर पद्य में अलंकारों और रस का प्रयोग होता है।  

 हिंदी साहिया में पद्य का अपना अलग ही मुकाम है।  पद्य को और भी खूबसूरत बनाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता हैं। अलंकार पद्य का गहना है।  इसके बिना पद्य एक ऐसी  खूबसूरत नारी के समान है जिसने श्रृंगार नहीं किया है।

 शरीर की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए जिस प्रकार मनुष्य ने भिन्न -भिन्न प्रकार के आभूषण का प्रयोग किया, उसी प्रकार उसने भाषा को सुंदर बनाने के लिए अलंकारों का सृजन किया। जिस प्रकार नारी के सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए आभूषण होते हैं, उसी प्रकार भाषा के सौन्दर्य के उपकरणों को अलंकार कहते हैं । इसीलिए कहा गया है -' भूषण बिना न सोहई कविता ,बनिता मित्त।

- Rakhi
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Monday 12 October 2015

Young साहित्य – StoryMirror Square (SMS) रोमांच रचनाकारों का

     

होज़ख़ास विलेज़  में सोलह अगस्त के दिन कुंजूम café में इतनी ज़्यादा भीड़ मोजूद थी कि वहाँ हर कोई हैरान हुए बिना नहीं रह सका | इतना शौर था की कुंजूम  café  गिलास में रक्खी आइस क्यूब की माफिक़ खड़खड़ा रहा था | थोड़ी देर में लोगों को मामला समझ आ चुका था | वहाँ StoryMirror Square (SMS)  नाम से एक राइटर मीट अप चल रहा था | जिसमें लोग बड़े चाव के साथ शरीक़ हुए थे | वहाँ डीयू  के बहुत सारे ऐसे लड़के - लड़कियाँ भी थे जो लिखने और सुनाने के लिए बहुत ज़्यादा excited थे| मीट अप अपने तयशुदा वक़्त पर शुरू हुआ यानी दोपहर के बारह बजते ही शंखनाद हो चुका था | सबसे पहले StoryMirror की टीम ने सबका इस्तक़बाल किया और उसके बाद टीम के हर एक सदस्य ने अपना स्वतंत्र रूप से संक्षिप्त सा इंट्रो दिया | उसके बाद सभी उत्सुक राइटर्स  से उनके बारे में भी पूछा गया , उनकी दिलचस्पीयों के बारे में  भी जानकारी ली गई |

       हिन्दी और ठेठ भाषाओं के साथ स्टायर का इस्तेमाल बहुत आसानी के साथ करता है | मीट अप में देखने के लिए जो सबसे खास बात लगी वो ये थी की हर आयु वर्ग के राइटर्स वहाँ मोजूद थे | साथ ही "गिरीश शर्मा " जैसा उम्दा और आश्र्यचकित करने वाला गिटारिस्ट ,सिंगर और musician भी अपनी प्रस्तुति के लिए मीटअप में मोजूद था | सीनियर लोगो में किरण बाबल जी ,मुकेश निरूला जी भी अपनी कविताओं के साथ जो हम सबके लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं मोजूद थे | ईशान दफ़ूटी , तौसीफ़ अहमद , रेहान ख़ान, इंदरजीत घोषाल, नज़रे इमाम, सच्ची कक्कर , राखी शर्मा, प्राशू जैन, भारत शर्मा, सोम्या तिवारी, मीमांसा शेखर, अंकिता गोयल, रजत महयच, हरेन्दर शर्मा जैसे दिल्ली  शहर के युवा लेखक भी इस जलसे में एक नये उत्साह के साथ शरीक हुए | डीयू  से जो विद्यार्थी राइटर्स आए थे , उन्होने तो अंदर तक झकझोर दिया अपनी लिखी हुई रचनाओं को सुनाकर | किसी ने Poem सुनाई किसी ने शॉर्ट स्टोरी तो किसी ने लेख भी सुना दिया | तभी तो हम कह सकते हैं की इस मीट अप में किसी भी तरह की कोई सीमाएँ नहीं थी | मीट अप के मध्य में गिरीश और भारत ने ऐसा माहौल बनाया की कुछ मिनटों तक सिर्फ़ तालियाँ ही सुनाई देती रही |
StoryMirrorइस मीट अप का संचालन आशीष  और आसिफ़  ने किया | जहाँ आसिफ़ विशुद्ध अँग्रेज़ी मे लिखता है तो वहीं आशीष

       वास्तव में young साहित्य ने पूरी तरह से literature का नक्शा बदल के रख दिया है | इतनी कम उम्र के बावजूद आप एक अनुभवी रचना को सबके सामने पेश करते हो ये अपने आप में एक बहुत बड़ी बात होती है | sms मीट अप के दौरान सभी राइटर्स को कुंजूम café  की फ्री coffee  स्कीम का भी बहुत बड़ा फायडा मिला | पूरे मीट अप के दौरान हर किसी के दिल में ये बात ज़रूर आई होगी की साहित्य सच में ही अब उम्र की बंदिशो में नहीं रहा | ऐसे युवा जन्म ले चुके हैं जो गहरे साहित्य के साथ उसमें रचने बसने का माद्दा रखते हैं | और इसी मुहिम को आगे ले जाने के लिए स्टोरी मिरर  sms को अस्तित्व में लाया है | आप ये मानिए की StoryMirror ने एक नई क्रांति का आगाज़ किया है जिससे young साहित्य को सच में ही एक बहुत बड़ा मंच मिला है | जिसपर young साहित्य अपना नाट्य खुद लिखेगा और खुद ही प्रस्तुत करेगा | StoryMirror  ने हरेक पहलू  पर सबसे खुलकर बात की गई , लोगों के विचार भी सुने गये StoryMirror को लेकर | इसके बाद सबने खुशी खुशी वहाँ से विदा ली StoryMirror के गुडिज़ के साथ , साथ ही ग्रूप फोटो भी खिचवाई गई | एक अनूठे और नये उत्साह के साथ वहाँ  से सबने विदा ली | sms का ये पहला राइटर्स मीट अप समाप्त हो चुका था लेकिन कुंजूम  cafe में काम करने वाले जगदीश और बाकी लोग अब भी अचम्भित थे पहली बार ऐसा young साहित्य का महाकुंभ देखकर |

- Ashish Jangra
  StoryMirror

Wednesday 7 October 2015

YOUNG साहित्य – Writer Groups & Poet Meet ups



हिन्दुस्तान की युवा साहित्य पीढ़ी अब कवि सम्मेलन  नहीं जाती और ना ही कवि गोष्ठियों में , क्योंकि उसने खुद एक ऐसा चलन  चला दिया है जो उसकी सुविधनुसार है |  इस  YOUNG जनरेशन ने  Poet Meets , Writer groups और  Writing Workshop  नाम की कुछ ऐसी चीज़ों का आविष्कार कर दिया, जिसकी बदोलत इन्होने खुद के Literature  का उत्पादन किया है | कुछ  Poetry groups ,  Pach , Poets collective  , Poets corner , Delhi Poetry  , Poets Artist unplugged  इस युवा पीढ़ी का जी भरके साथ दे रहे हैं  | इन लोगों को वो मंच हासिल करवाते हैं जिसका हक़ इनकी बहुमुखी प्रतिभा रखती है | सभी प्रमुख समूह महीने में कम से कम 2 इवेंट रखते हैं और उसमें लोगों को फ़ेसबुक और वाट्सप के ज़रिए अपनी रचना प्रस्तुत करने के लिए इन्वाइट करते हैं |

इसके बाद तो इन मीट अप्स  में इन युवाओं की झड़ी सी लग जाती है | सभी इतने जोश ख़रोश के साथ तशरीफ़ लाते हैं की सारा माहौल ही इनकी गुफ्तगू से गूँज उठता है | मैं पिछले 2 सालों से Pach नाम के 1 राइटर्स ग्रुप के मीट अप में बिना किसी रुकावट के लगातार जा रहा हूँ | इस ग्रुप का पूरा नाम Poetry end cheep homour  है | इस ग्रुप की ये ख़ासियत है की आप यहाँ बिना किसी सीमाओं के अपनी भावनाओं को पच कर सकते हैं , ऐसा इस ग्रुप के founder  का कहना है | यहाँ  आपको ऐसा अहसास होगा की आप अपने घर में घर के सदस्यों के बीच Poetry कर रहे हो , इस ग्रुप में आपको इतनी तवज़्ज़ो मिलती है की आप खुद को फूला नहीं समाते हैं |

मज़ाक के माहौल में आप इतना घुलमिल जाते हैं की आप चाहेंगे की ये मीट अप ख़त्म ही ना हो , बस चलती रहे देर तक |

पच ग्रुप के फेसबूक पेज़  पे भी इतनी चहल -पहल होती है की हर युवा अपने साहित्य को लगातार अपने साथियों के साथ साझा करते रहते हैं | अनूप बिश्नोई , सीधांत माग़ो , विवेक कुमार पच को गाइड करते हैं और हरेन्दर शर्मा  उर्फ हैरी , आशीष जांगरा , नरेन्दर कुमार, इशान ड़फूटी, दीपाली शर्मा, मेघा गरचा  पच के रेग्युलर मेंबर हैं जो अपनी कविताओं और कहानियों से पच को गुलज़ार करते हैं | अभी कुछ दिन पहले ही पच ने अपना दूसरा जन्मदिन मनाया है श्री अशोक चक्रधर जी की उपस्थिति में जिन्हें पूरा हिन्दुस्तान 1 हास्य  और व्यंग कवि के रूप में जानता है | उन्होनों पच के जन्मदिवस पर सभी सदस्यों को भावों के बारे में विस्तार से बताया और कविता के कई रूपों का भी ज़िक्र अलग से किया |

तो इस तरहा से हम कह सकते हैं की पच अपने मकसद में कामयाब होता दिखाई दे रहा है | इस ग्रुप में 1  अलग सा उत्साह नज़र आता है | इसके अलावा 1 ग्रुप और है जो सिर्फ़ Poetry  को अपने तरीके से सबके सामने ला रहा है | इस ग्रुप का नाम Poets corner  है और ये इस ग्रुप पे देश भर के Poets  का जमावड़ा है | फेसबूक  पे करीब 22 हज़ार  Poets  की संख्या Poets corner के ग्रुप में है | ये सभी 22 हज़ार मेंबर रोज ग्रुप में अपनी Poem  डालते हैं और 1 दूसरे की Poem भी पसन्द करते हैं | Poets corner हर साल सर्दियों में Delhi Poetry Festival का भी आयोजन करता है | इस पूरे Fest  में देशभर की हस्तियों के साथ Poets corner  के members साहित्य का अलख जलाते हैं |

हमारा Young  साहित्य इन writer groups  की बाबत भी अपने आपको लिखते हुए निखार रहा है या मांज रहा है | किसी ने सही भी कहा है की हर क्रांति में युवाओं की सबसे बड़ी भूमिका होती है और ये जो साहित्य की यानी नये और मौलिक साहित्य की क्रांति है इसमें यूथ ही अपने तरीके से बदलाव ला सकता है और सही मायनों में देखा जाए तो बदलाव आ भी रहा है | आज इस युवा पीढ़ी में इतना साहस आ चुका है की ये अपने का लिखा सबको परोसते हैं और खुद भी सबका लिखा हुआ चखते हैं |


इसीलिए इस Young साहित्य में जो उछाल आ रहा है वो इसी बदलाव और सोच का नतीजा है |

- Ashish Jangra 

Saturday 26 September 2015

YOUNG साहित्य - निडर , बेबाक और अंतहीन


आज की तारीख़ में अगर साहित्य को इंग्लिश वाला YOUNG कहा जाए तो कोई बुरी बात नहीं होगी |
जी हाँ ! अब आज का साहित्य वो परिपक्व साहित्य नहीं रहा जो आज से तीस - चालीस साल पहले था |
मुक्तिबोध की परम्परा अब  नहीं रही  , अब  साहित्य  फास्ट फूड टाइप का हो गया है  जो सुनते ही या पढते ही दिमाग़ में घर कर लेता है , लेकिन कुछ समय बाद ही घर निकाला भी हो जाता है |

तो आइये बात शुरू करते हैं यंग साहित्य की जो आजकल हऱ युवा की आदत बन चुका है |और आदत भी ऐसी जो धीरे धीरे सार्थक रूप लेती जा रही है | आज ऑनलाइन क्रेज़ इतना बढ़ चुका है की युवा जगत इसे हाथोहाथ भूना रहा है

फ़ेसबुक  पे हर दूसरा लड़का या लड़की जिसकी उम्र यही सोलह से बीस के बीच की होती है ,अपने आपको लेखक कहलाना  चाहता है  | आप कभी भी फ़ेसबुक पे जाइए आपको इनका लिखा हुआ सब मिलेगाआप चाहे मेट्रो  में देखलो या फिर बस स्टॉप  पे नज़रें घुमा लो आपको कोई ना कोई यंग यूथ हाथ में किताब लेकर उसमें आँखें सेकता हुआ मिल जाएगा |

चाहे फिर हाथ में .एळ जेम्स का फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे  का एक अजूबा हो या फिर इंडियन तोल्स्तोय 'चेतन भगत ' का कोई हल्का फूलका उपन्यास हो .., सारे मसाले को यूथ ऐसे एंजॉय करता है जैसे बर्गर खा रहा हो | इन्हें ना तो हिन्दी पढ़ने से गुरेज़ है और ना ही अँग्रेज़ी तो वहीं उर्दू को अपने स्टेट्स में दाखिल करते युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है बाजरे के खेत में खरपतवार के जमावड़े के जैसे  ,  इन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता की ये सही लिख रहे हैं या ग़लत , इन्हें तो सिर्फ़ इस बात से फ़र्क पड़ता है की हमारी भावनाएँ जाहिर हो रही हैं या नहीं | सही भी है ये बात की आप अपनी भावनाओं को सही रूप दे पा रहे हैं या नहीं ,और आज का युवा तो पागल है अपनी भावनाओं को सबके सामने जाहिर करने के लिए , इसके लिए उसे कविता का सहारा लेना पड़े या कहानी का,  इस YOUNG साहित्य को शहर भर में चलने वाले POETS MEETS  का भी खूब साथ मिलता है | यहाँ सब टी पार्टी करते हुए अपनी रचनाएँ एक दूसरे को सुनाते हैं और सराहते भी हैं | इन्हें आलोचना, समीक्षा जैसे शब्दों का ज्ञान ही नहीं होता , ये सिर्फ़ अपनी मस्ती में अपने साहित्य को रचते हैं | ,एक दूसरे की भावनाओं को समझते हुए एक अनूठे साहित्य का निर्माण करते हैं |आप ये मानलो की ये यंग साहित्य अब किसी भी गुटबाज़ी में नहीं फसने वाला , इसे कोई नहीं रोक सकता अपने शब्द बाहर निकालने के लिए , ना कोई साहित्य का आलोचक ना कोई साहित्य को अपना सबकुछ समझने वाला और ना ही वे संस्थाएँ जो साहित्य को समर्पित होने का दावा करती हैं |

इस युवा पीढ़ी को सोशल मीडिया  का ऐसा मंच मिला हुआ है जिसपर बेबाक ,बेफिकर होकर अपने आपको सामने लाता है |

इसके हर ट्विट  और स्टेट्स  में ज्वालामुखी फुटता है बिना किसी की इजाज़त के , ब्लॉग  पर भी जो क्रांति इन लोगों ने चला रखी है उससे हर बड़ा प्रकाशित साहित्यकार डरा हुआ है , क्योंकि इस पीढ़ी को आप प्रकाशित करने का लालच नहीं दे सकते , उसके पास पहले से ही इतने साधन हैं की वो जहाँ पहुँचना चाहता है वहाँ बिना किसी रुकावट के आसानी से पहुँच रहा है | तो मित्रो , बात इतनी सी है की आप इन YOUNG राइटर्स को   बरगला नहीं सकते , फुसला नहीं सकते, बहला नहीं सकते | ये तो बस अपने बहाव में बहते हैं, अपने विचारों को अपने तक सीमित नहीं रखते ,उन्हें अपने मोबाइल में टाइप करते  हैं, और झट से सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देते  हैं | शुरू होता है फिर एक दूसरे का लिखा हुआ साझा करने का उपक्रम , और इसी उपक्रम को आगे बढ़ाते हुए ये युवा लेखक /कवि / ब्लॉगर अपने पाठकों को अपनी ओर खिचते हैं |


तो की साहित्य कोई उमर नहीं  होती  , और ये YONG साहित्य  तो   बहुत ही चपल और तेज़ है | ये अपने आपको बुढाने नहीं देगा , खुद को जवान रखने का इसका सिलसिला हमेशा बना रहेगा |

- Ashish Jangra 
  StoryMirror