Tuesday 24 November 2015

भारत के त्यौहार

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            त्यौहार हमारी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा हैं. ये खुशियों की सौगात लेकर आते हैं.विए ज़िन्दगी की नीरसता को दूर करते हैं.भारत में बहुत से त्यौहार मनाये जाते हैं.इनके तीन प्रकार हैं राष्ट्रीय, धार्मिक और मौसमी.राष्ट्रीय त्यौहार देशभक्ति की भावना के साथ मनाये जाते हैं.धार्मिक त्यौहार लोगों की धार्मिक मान्यताओं पर आधारित होते हैं.मौसमी त्यौहार मौसम पर आधारित  होते हैं.लोग इन्हें बड़े ही उल्लास और ख़ुशी के साथ मनाते हैं. राष्ट्रीय त्योहारों में स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस,गाँधी जयंती इत्यादि आते हैं.धार्मिक त्योहारों में गुरु पर्व, होली, लोहड़ी,बुद्धपूर्णिमा,महावीर जयंती, दशहरा, दिवाली, जन्माष्टमी, छठ, नवरात्री, ईद, क्रिसमस इत्यादि सम्मिलित हैं.मौसमी त्यौहार हैं ओणम,पोंगल,बसंत पंचमी बैशाखी आदि.त्यौहार ज़िन्दगी की धूमधाम को बढ़ाते हैं. ये धूमधाम ज़िन्दगी में नया उल्लास और मस्ती लेकर आती है.त्योहारों से नयी उर्जा का संचार होता है.ये ख़ुशी और शांति का सन्देश देते हैं.भारत के त्यौहार सदभावना संस्कृति से परिपूर्ण तथा रोमांचक और रंगीन होते हैं.भारत के त्यौहार यहाँ के लोगों की तरह अपने आप में विभिन्नता लिए हुए हैं.भारत के कई त्यौहार धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं.कुछ त्यौहार तो सम्मानित लोगो की स्मरणीय यादों के साथ जुड़े होने के कारण मनाये जाते है.ऐसे त्यौहार उन लोगो की यादों से लोगों एक नयी शिक्षा और उनके जीवन से सीखने को प्रेरित करते हैं.वहीँ दूसरी तरफ मौसम में बदलाव और नया सत्र में भी कुछ त्यौहार मनाये जाते हैं!

राष्ट्रीय त्यौहार जैसे गणतंत्र दिवस स्वतंत्रता दिवस और गाँधी जयंती आदि बड़े ही उत्साह के साथ मनाये जाते हैं.ये त्यौहार राष्ट्रीय पर्व हैं और इनमे राष्ट्रीय अवकाश रहता है.ये त्यौहार सारे देश में समान रूप में मनाये जाते हैं. हर धरम हर मज़हब इनको उसी हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है. दिल्ली ऐसे त्योहारों का मुख्य शहर है.गणतंत्र दिवस की परेड दिल्ली में बड़ी ही भव्य तरीके से की जाती है.सैनिकों के अलावा बहुत से स्कूलों के

दिवाली हिन्दुओं में मनाया जाने वाला प्रसिद्ध त्यौहार है.इए त्यौहार  हिन्दू भगवान् राम की रावण पे विजय के पश्चात अयोध्या लौटने के उपलक्ष्य में मनाते हैं.ये बुराई पे अच्छाई की जीत है.घरों को साफ़ और उनमे पुताई की जाती है.लोग नए कपडे पहनते हैं.व्यापारी अपने नए काम की शुरुवात करते हैं.मिठाइयाँ बांटी जाती हैं.सब अपने घरों को सजाते हैं घरों में दीयों से रौशनी की जाती है माँ लक्ष्मी की आराधना की जाती है.बच्चे पटाके चलते हैं और बड़े भी इस त्यौहार का पूरा लुत्फ़ लेते हैं!

रामनवमी पर्व राम के जन्मदिन के अवसर पर पर मनाया जाता है.जन्माष्टमी का पर्व कृष्णा  के जन्मदिन के उपलक्ष्य पे मनाया जाता है.दुर्गा पूजा असम बंगाल और दुसरे राज्यों में धूमधाम से मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध त्यौहार है.इसमें दुर्गा माँ की पांच दिन तक पूजा अर्चना की जाती है.फिर पांच दिन बाद धूमधाम से उनकी प्रतिमा को पानी में विसर्जित किया जाता है.उत्तर भारत में दशहरा विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है.ये मान्यता है की इस दिन बुराई की अच्छाई पैर जीत हुई थी.राम ने रावन पे विजय प्राप्त की थी..महाराष्ट्र में गणपति उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है!
होली सर्दियों के ख़तम होने पे मनाया जाने वाला त्यौहार है.ये त्यौहार बसंत ऋतू के आगमन कका सूचक माना जाता है.मणिपुर में इस पर्व पर रासलीला का आयोजन किया जाता है जो कि भगवान् कृष्णा और गोपियों को समर्पित होता है.लोग एक दुसरे पर रंग डालते हैं.होलिका दहन किया जाता है जिसमे प्रहलाद को याद किया जाता है.ये त्यौहार भी हमे बुराई पर अच्छाई की जीत का सन्देश देता है!

छठ पूजा बिहार भारत और कुछ राज्यों में मनाई जाती है.सुबह सुबह ही भगवान् सूर्य की उपासना की जाती है मिठाइयाँ और फल सूर्य भगवान् को अर्पित किये जाते हैं .
ईद रमजान माह के ख़तम होने पर मनाई जाती है.ईद के दिन मोहम्मद साहब के समक्ष नमाज़ पढ़ी जाती है.पूरे महीने मुसलमान व्रत रखते हैं.अन्तं में ईद मनाई जाती है जिसमे खाने और खिलाने के प्रथा को आगे बढे जाता है!

सिख गुरुनानक देव जि का जनम दिन बाई धूमधाम और उल्लास के साथ मानते हैं इस अवसर पर गुरुद्वारों में अरदास की जाती है तथा लंगरों का आयोजन होता है.चिराग जलाये जाते हैं व पटाखे भी फोड़े जाते हैं.ये गुरु अर्जुनदेव और गुरुतेग बहादुर का जनम दिवस व उनका शहीद दिवस भी मानते है. बड़ी तादाद में लंगर सेवा का आयोजन होता है. बौद्ध धार्मिक त्यौहार बुद्ध पूर्णिमा और जैन महावीर जयंती मानते हैं!

क्रिसमस ईसाईयों का एक प्रमुख त्यौहार है. ये ईसा मसीह के जन्मदिन के अवसर जाता है.ये दिसंबर की २५ तारीख को मनाया जाता है.क्रिसमस ट्रीको सजाया जाता है जिस पर खिलोने बनावटी तारे बल्ब आदि लगाये जाते हैं.संता क्लॉज़ आते हैं चर्च में बड़ा आयोजन होता है.प्राथनाएं की जाती हैं पारसी धरम के ओग भी क्रिस्टियन धरम के लोगों की तरह अपने त्यौहार मानते हैं वो नओरोज़ मानते है अगस्त और सितम्बर में!

भारत में मौसमी त्यौहार भी मनाये जाते हैं. बिहू बड़े ही हर्सौल्लास के साथ मनाया जाता है.बैसाखी फ़सल कटने पर मनायी जाती है.ओणम भी क्रेरल का त्यौहार है जो फसलो से जुड़ा है.बसंतपंचमी जोकि उत्तर भारत में मनाया जाता है बसंत ऋतू के आगमन का द्योतक है!

विभिन्न तरह के त्यौहार भारत में मनाये जाते हैं.ये त्यौहार जहाँ आपसी सद्भाव और भाईचारा बढ़ाते हैं वहीँ समाज को नयी दिशा व व्यक्तियों को उनकी ज़िन्दगी की नीरसता को दूर करते हैं.त्यौहार मानाने से उनमे नयी उर्जा व शक्ति का संचार होता है.जलोग एक दुसरे के साथ समय व्यतीत करते हैं .हमारे जीवन में त्योहारों की महत्ता को अनदेखा नहीं किया जा सकता क्युंकी ये माध्यम हैं खुशियों के उल्लास का आपसी सद्भाव का!


बच्चे इस परेड भाग लेते हैं.सभी राज्य इसमें अपनी झांकियां लेकर आते हैं जो की उनके प्रदेश को दर्शाती हैं और साथ ही साथ उनके संसाधन उनमे हुई उन्नति और उनकी उपलब्धियां को भी दर्शाया जाता है.भारतीय सेना इस परेड में अपनी शक्ति गोला बारूद एयरक्राफ्ट आदि का प्रदर्शन करती हैं इसमें तीनो सेनायें जल सेना वायु सेना थलसेना आदि आती हैं.गाँधी जयंती पर नेता और और देश की जनता गाँधी जी को श्रधांजलि अर्पित करते हैं और उनकी शिक्षाओं का जीवन में पालन करने का प्राण लेते हैं.स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमन्त्री राष्ट्रीय ध्वज फैरातें हैं तथा राष्ट्र को लालकिले से सम्भोदित करते हैं!

--Rakhi
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Friday 20 November 2015

प्रेम चंद- उपन्यास सम्राट



प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू के महान लेखकों में से एक हैं .इनका पूरा नाम धनपत राय श्रीवास्तव था इनको नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना गया .इनको उपन्यास लिखने में महारथ हासिल था इसीलिए इनको शरतचंद्र चट्टोउपाध्याय ने उपन्यास सम्राट कहकर सम्भोधित किया प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास में ऐसी की एक ऐसी परम्परा का विकास किया जिसने पूरी शती के साहित्य का मार्गदर्शन किया.प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी! उनके लेखन के बिना हिंदी साहित्य का विकास अधूरा है .वे एक संवेदनशील लेखक सचेत नागरिक कुशल वक्ता थे.

प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी के निकट लमही गाँव में हुआ था. उनकी माता का नाम आन्नादी देवी था तथा पिता मुंशी अजायबराय लमही में डाकमुंशी थे .उनकी शिक्षा का प्रारंभ उर्दू और फ़ारसी से हुआ.पढने का शौक उन्हें बचपन से ही था.तेहरा साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्मे होशरूबा पढ़ लिया था.१८९८मे मीट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और एक विद्यालय में शिक्षक हो गए.नौकरी के साथ उन्होंने पढाई जारी रखी.१९१० मे उन्होंने अंग्रेजी दर्शन फ़ारसी और इतिहास में इन विषयों के साथ अन्तर पास किया और १९१९ में बी.ए. पास करने के बाद शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर नियुक्त हुए.उनके माता पिता का देहांत जब हुआ तब वे सात वर्ष के थे.उनका जीवन काफी संघर्ष में बीता.उनकी शादी १५ वर्ष की आयु में हुई जो की सफल नहीं रही फिर उन्होंने दूसरी शादी की और उनकीं तीन संतान हुयी.१९१० में उनकी रचना शोज़े वतन के लिए इनपे जनता को भड़काने का आरोप लगाया गया.इसके बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर लिखना शुरू किया.वे प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे.और कई कहानियों का सृजन इसी नाम से किया. अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे गंभीर रूप से बीमार पड़े.उनका निधन ८ अक्तूबर  को हुआ.

प्रेमचंद आधुनिक हिंदी के पिता माने जाते हैं.उनकी पहली कहानी सौत थी जो की सरस्वती पत्रिका के दिसम्बर अंक में प्रकाशित हुआ.उनकी अंतिम कहानी कफ़न थी. उनका लेखन कार्यकाल बीस वर्ष का था.उनकी कहानियाँ यथार्थ पे आधारित होती थी. प्रेमचंद की कृतियाँ सामाजिक विषयों पर आधारित थी. चाहे वो दलित से जुड़े हुए विषय हों या स्त्रियों से सम्बंधित.हों.उनका पहला लिखित उपलब्ध उर्दू उपन्यास असरारे-मुआबिद है.हमखुर्मा व असरारे-मुआबिद है जो हिंदी में प्रेमा के नाम से प्रकाशित हुआ.इसके बाद उनका पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन के नाम से आया.जो १९०८ में प्रकाशित हुआ.सोज़े-वतन यानी देश का दर्द .देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होने के कारन इसपर अँगरेज़ सरकार ने रोक लगा दी.प्रेमचंद के नाम से उन्होंने शुरुवात बड़े घर की बेटी कहानी से की.उनके प्रमुख उपन्यास सेवासदन श्रम रंगभूमि निर्मला कायाकल्प गबन कर्मभूमि गोदान मंगलसूत्र इत्यादि थे.उन्होंने कई कहानियों का संग्रह भी किया जिनमे दुनिया का सबसे अनमोल रतन सप्त्सरोज नवनिधि प्रेमपूर्णिमा प्रेमपचीसी प्रेम प्रतिमा आदि थे. उन्होंने नाटक भी लिखे पर नाटक  इतने सफल नहीं हुए जितनी उनकी कहानिया और उपन्यास प्रचलित हुए संग्राम प्रेमकी वेदी इत्यादि उनके प्रमुख नाटक थे. उन्होंने चंद निबंध भी लिखे जिनमे चाँद मर्यादा स्वदेश आदि प्रमुख हैं .

प्रेमचंद ने हिंदी को एक नया आयाम दिया. उन्होंने बेहद मार्मिक और समाज से जुडी हुयी रचनाओं का सृजन किया और उनकी रचनाओं को काफी सफलता मिली. उनकी कहानियों को काफी सराहना मिली.उनको उनकी अनुपम कृतियों के लिए हमेशा याद किया जायेगा!

Tuesday 17 November 2015

कहानी के किरदार- किरदारों की कहानी


हर कहानी में किरदार का अपना १ अलग ही महत्व होता है, बिना किरदारों के कहानी कहना या गढना असंभव सी बात है | ये ठीक उस तरह की बात है कि जैसे शादी है पर बगैर दूल्हा दुल्हन के, बहुत से लेखकों का मानना है कि कहानी की शुरुआत ही किरदार से आरंभ होती है | जब कोई किरदार आप आस पास के माहौल में देखते हैं तो आपके दिमाग़ में १ कहानी पनपनी शुरू हो जाती है |

कहानी अपना आकार किरदार के साथ ही ले पाती है, और किरदार भी अपना रंग तब जमा सकता है जब कहानी किरदार की पकड़ में हो. ये भी सच है की किरदार कोई पैदा करने वाला जीव नहीं है, वो पहले से ही हमारे आसपास के जीवन में जीवन यापन कर रहे होते हैं | आप मंटो साहब की कोई भी कहानी पढ़ लीजिए आपको उनकी कहानी के किरदार ऐसे मालूम पड़ेंगे जैसे वे किरदार आपसे मेल खाते हों. और हुआ भी यही था, जब भी उन्होने किसी कहानी का खाका अपने ज़हन में डाला तो उनके किरदार सबसे पहले उनके लिखे हुए पन्नों पर दस्तक देते थे. उसके बाद कहानी अपने चरम पर होते हुए पाठकों के दिमाग़ और दिल पर गहरा प्रभाव छोड़ती थी और आज भी लोग मंटो के प्रभाव से निकल नहीं पाए हैं |

कॉलेज में एक उपन्यास पढ़ा था  "जहाज़ का पंछी" इलाचंद्र जोशी जी का लिखा हुआ एक अजीब सी दुनिया में ले जाने वाला उपन्यास, इस उपन्यास का नायक एक घूमकड़ इंसान होता है जो हर बार अपनी यात्रा खुद तय करता है, वो न जाने किस चीज़ की तलाश में भटक रहा होता है, किस मंज़िल को पाने हेतु वो दर दर की ठोकरें ख़ाता है | यह एक आत्मकथा की शैली में लिखा हुआ उपन्यास है | इस किरदार को लेखक ने शायद अपने अंदर जिया है तभी वो इतने अच्छे से संप्रेषण हो पाता है कथा में.


यहाँ मैं एक और उपन्यास का ज़िक्र करना चाहूँगा जिसका शीर्षक "काशी का अस्सी है" इस उपन्यास के लेखक "काशीनाथ" हैं जो काशी यानी बनारस में ही निवास करते हैं | काशी का अस्सी लिखने से पहले काशीनाथ जी ने बनारस को अच्छे से घोट के पिया हुआ था, मेरा यहाँ ये मतलब है कि वे काशी  के चप्पे चप्पे से वाकिफ़ हैं |
काशीनाथ जी ने इस उपन्यास को वास्तविकता का ऐसा लबादा ओढ़ाया है जो वाकई में बहुत बहुत क़ाबिले तारीफ है!

उन्होने काशी नगरी  के अस्सीघाट के उन लोगों का महीन निरीक्षण किया जो मनोरंजक होने के साथ साथ किरदार के प्रारूप में एकदम फिट बैठते थे. काशीनाथ जी इन किरदारों से रोज पप्पू की मशहूर चाय की दुकान  में मिलते और उनकी कही बातें उनके गप्पे सब अपने जहन में डाल लेते और घर आकर उन्हें पन्नों पे उतार देते.

तो इसी तरीके को आजमाते हुए काशीनाथ जी ने काशी का अस्सी का निर्माण किया. उन्होने सिर्फ़ किरदारों की खोज़ की और बस फिर बन गया अपने आप में हिन्दी साहित्य का एक कामयाब उपन्यास. विश्व साहित्य की या और दूसरी भाषाओं की कहानियों की बात की जाए तो वहाँ भी यही प्रारूप कामयाब रहा है. लियो तोल्स्तोय से लेकर व्लादिमीर नावकोव तक ने सिर्फ़ मज़बूत और वास्तविक किरदारों का उपयोग करके बेहतरीन रचनाओं का सृजन किया.

कहतें हैं लियो तोल्स्तोय ने जब वार एंड पीस लिखा तो उन्होनें उस समय रूसी राजतंत्र   का बहुत ही बारीकी से विश्लेषण किया, इसीलिए वार एंड पीस में इतने सारे किरदार हैं और वे सभी कहानी को उसकी मंज़िल तक ले जाते हैं. चलिए यहाँ तो हमने कुछ लेखकों की कहानियों के बारे में बात की लेकिन अगर हम कहानी और किरदार की असली बात करें तो वो ये है की इन दोनो का एक दूसरे के बिना निर्वाह नहीं हो सकता. अगर कहानी को सृजन की कड़ाही में तलना है तो सबसे पहले हमें किरदारों को मसालों की माफ़िक़ इस्तेमाल करना होगा. हम अगर किरदारों में भी अगर इतना घुस गये की कहानी को ही भूल जाएँ तो वो भी कहानी और किरदारों के लिए अच्छी बात नहीं होगी. इसलिए कहानी और किरदार दोनों को हम किसी कहानी के दो मुख्य और आरम्भिक तत्व मान सकते हैं. तो अबकी बार जब हम कोई कहानी सोचेंगे या लिखेंगे तो हम सबसे पहले किरदार ढूंढ़ेंगे और फिर कहानी की ज़मीन पर क़िस्सों का १ मकान बनाएँगे.

- Ashish Jangra
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